सब सुलझाने की उलझन में
उलझ रही हूं मैं
क्या सबकुछ समझने की
कोशिश में कुछ भी समझ रही हू मैं
खुदको ढूंढने की जिद में
कहां खो रही हू मैं
सब पाने की ख्वाहिश में कहां
कुछ पा रही हूं मैं
मैं सबकुछ की चाहत में
हाथ में कुछ कहां को लाती हूं
पर कुछ न मिलने की चाहत में
ही तो मैं नया जहान बनाती हू
आखिर खुद को खोकर ही
तो खुद से मिल जाती हू
सब कुछ की आस भुलाकर ही
मैं सबकुछ पा जाती हू ।