मेरी जिन्दगी का खूबसूरत क्षण वो पल रहा।
जब पहली बार प्यार में दिल का दखल रहा।।
उस नूर की याद से बहने लगता चिकना तरल।
नजर से नजर के धमाल में न कोई छल रहा।।
लड़की से औरत बनी वो लड़के से मर्द बना।
इश्क बदला मोहब्बत में बेशकीमती पल रहा।।
एक शायर पैदा हुआ और शायरी अच्छी लगी।
जिम्मेदारियों की भीड़ में मददगार फल रहा।।
क्या कहूँ मैं जाल में फंसती गई 'उपदेश' के।
उसी के दांव-पेच से हमारा जन्म सफल रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद