गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यह समाज न होता
यह जाती न होती
यहाँ धर्म न होते
यहाँ संप्रदाय न होते
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यहाँ देश न होते
यहाँ प्रदेश न होते
यहाँ युद्ध न होता
यहाँ संघर्ष न होता
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यहाँ प्रणाली न होती
यहाँ पैसा न होता
कोई गरीब न होता
कोई अमीर न होता
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यहाँ यंत्र न होते
यहाँ भागदौड़ न होती
यह गंतव्य न होता
यह बेचैनी न होती
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
कोई पक्ष न होता
कोई अपक्ष न होता
कोई अपना न होता
कोई पराया न होता
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
कोई स्री न होती
कोई पुरुष न होता
कोई छोटा न होता
कोई बड़ा न होता
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यह क्षोभ न होता
यह शोक न होता
यह अश्रु न होते
यह करुणा न होती
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यहाँ कोई निर्धन न होता
यहाँ कोई दानी न होता
यहाँ अच्छाई न होती
यहाँ बुराई न होती
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यहाँ मल-मूत्र-रसायन की नदियाँ न बहती
यहाँ प्रदूषित हवा न चलती
विद्वेष की ज्वाला न भड़कती
भय से रूह न काँपती
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यह मंदिर न होते
यह मस्जिद न होती
यह गिरिजाघर न होते
यह गुरुद्वारा न होती
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
कोई भागवत गीता न होती
कोई कुरान न होता
कोई ग्रंथ साहिबा न होता
कोई बाइबल न होता
गर मनुष्य न होता इस धरातल पर तो..
यह ज्ञान न होता
यह अज्ञान न होता
हम सकून जीते
हम सकून से मरते।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️