एक बार एक गाँव में एक भोला श्यामू अपने सब्जियों की बिक्री से दुखी था | यह देख एक डाकू को उस पर दया आ गई | वह उस बेरोजगार भोले श्यामू के पास गया और बोला , " मेरे साथ चलो , लूट में बहुत सारा धन मिलेगा " श्यामू बैकार बैठे - बैठे परेशान हो गया था | इसलिए वह उस डाकू के साथ लूट करने को तैयार हो गया । लेकिन अब समस्या यह थी की उसे लूट करना आती नहीं थी ।
उसने आज तक के कंकड़ भी नहीं चुराया था।
उसने साथी से कहा , " मुझे लूट करना आती तो नहीं है , फिर कैसे | " डाकू ने कहा " तुम उसकी चिंता मत करो , तुम्हें सब सिखा दूंगा "।
अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक सुनार की दुकान पर लूट करने पहुंच गए। वह सुनार की दुकान से दूर खड़ा था । वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता भी न था | लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से डाकू अपने नए साथी श्यामू को गली के मोड पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर या किसी के दिखाई देने पर आवाज लगाने को कहकर खुद सुनार की दुकान में लूट करने चला गया । नए साथी श्यामू ने थोड़ी ही देर में अपने साथी डाकू को आवाज लगाई , " जल्दी उठो , यहाँ से भाग चलो , यहां से भाग चलो । ... दुकान का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है " डाकू ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह सोने की दुकान छोड़ उठकर भागने लगा |
कुछ दूर दौड़कर जाकर दोनों छुपकर खड़े हुए तो डाकू ने साथी से पुछा , " दुकान का मालिक कहाँ खड़ा था ? कैसे देख रहा था ? क्या उसने कुछ देखा ? नए डाकू ने सहजता पूर्वक जवाब दिया , “ मित्र ! ईश्वर हर जगह मौजूद है । वह सब देख रहा है। इस संसार में जो कुछ भी है।सब उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है, सुन रहा है । मेरी अंतरात्मने मुझसे कहा कि ईश्वर यहां भी मौजूद है, और हमें लूट करते हुए, हमें भागते हुए देख रहा है । इस स्थिति में मुझे हमारा भागना ही उचित लगा । पहले तो डाकू पर बेरोजगार भोले श्यामू की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसके बाद डाकू का हृदय परिवर्तन हुआ और उसे ज्ञात हुआ कि ईश्वर की नजरे उसे देख रही है और उसने लूट करना ही छोड़ दिया |