"कौन हूं मैं"
कौन हूं मैं,
कभी लगता है ज्ञात हूं मैं
कभी लगता है अज्ञात हूं मैं
कभी लगता है शोर हूं मैं
कभी लगता है मौन हूं मैं ।
ये समझ नहीं आ रहा है आखिर कौन हूं मैं,
कभी लगता है विकट परिस्थितियों का सार हूं मैं
कभी लगता है विडंबना हूं मैं,
कभी लगता है एक उलझी हुई किरदार हूं मैं।
कभी लगता है मुस्कुराहट हूं मैं,
कभी लगता है घबराहट हूं मैं
खुद को रोज तलाशू आखिर कौन हूं मैं,
कभी लगता है मंजिल को पाने की राह हूं मैं,
कभी लगता है आसमान को छूने की चाह हूं मैं
जिंदगी के सफर में ये नहीं समझ आ रहा आखिर कौन हूं मैं ।
रचनाकार-पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा,अरेराज..पूर्वी चंपारण( बिहार)