(बाल कविता)
गरम जलेबी अह हा हा
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गरम जलेबी अह हा हा ।
खाकर आया बड़ा मजा ।।
टेढ़ी-मेढ़ी गोल बनी,
लगती है चितचोर बड़ी,
नस-नस में रस की धारा,
मीठा-मीठा है सारा,
मोहित हो जाता वह भी
हलवाई जो रहा बना ।
गरम जलेबी अह हा हा ।।
देख-देख मन ललचाए
मुंह में पानी भर जाए
लबर-लबर जी लबराए
लार-टपा-टप चू जाए
सोंधी-सोंधी खुशबू से
भर जाता है घर अपना ।
गरम जलेबी अह हा हा ।।
करो सुबह इसका सेवन,
मिले ऊर्जा नम्बर वन,
माइग्रेन को दूर करे ,
कब्ज़ पेट का शीघ्र हरे,
सीमित सेवन करने पर
बन जाती है यही दवा ।
गरम जलेबी अह हा हा ।।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'