वरुण देव : - कुछ दिनों से धूप बढ़ गई । इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि " जाके बरसो " ।
मेघ : - जैसी आपकी इच्छा प्रभु ।
मेघ : - क्या हुआ आसमान जी ! बहुत खुशी दिख आ रहे है ।
आसमान : - हाँ ! क्यों नहीं, धरा तक पहुंचाने की मन लग रहा है । सारे संसार स्वर्ण रूप धारण करेगी ।
धरा : - बहुत-बहुत आभार आसमान जी,बारिश होने से मेरे जन्म सार्थक होगा ।
आसमान : - मैं तेरी आभार को स्वीकार करूँगा, जब तुम संसार को स्वर्ग बनाओगी ।
धरा : - जरूर आसमान जी । इस कार्य से हमारे मित्रता और बढ़ जाएगी । संसार को स्वर्ग बनाने की हम दोनों को एक होना पड़ता है ।
आसमान : - अवश्य धरा जी ।
धरा : - मैं तुमसे एक विनती करना चाहती हूँ ।
आसमान : - अरे धरा जी ! विनती नहीं आदेश दो मुझे ।
धरा : - जब संसार बारिश से भीग जाते तब आसमान में इंद्रधनुष आने से बहुत प्यारा लगता है । संसार और जनता बहुत खुशी होंगे ।
आसमान : - जरूर धरा जी । आपकी योजना बहुत उत्तम है । चलो हम फिर मिलेंगे ।