ये कविता मैंने रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता 'कलम आज उनकी जय बोल' से प्रेरित होकर लिखी है।
देश को लुटा बारी-बारी ,
धर्म की भड़काकर चिंगारी ,
कुर्सी पर चढ़ कर बैठ गए है ,
किसकी गर्दन किसकी आरी ,
कदमों में रखकर जनता सारी ,
अंधभक्तों जरा मुँह तो खोलो,
राजनीति की जय बोलो।
जिसने सच का दीप जलाया ,
उसे तूफानों ने घेर लिया ,
उसे बताकर देश का दुश्मन ,
उससे ही मुँह फेर लिया ,
सत्य पर आज असत्य भारी ,
अंधभक्तों जरा मुँह तो खोलो,
राजनीति की जय बोलो।
पीकर न्यौछावर की घूंटे ,
प्रशासन ही देश को लुटे ,
संस्कार से पैसा भारी ,
हर तरफ़ है भ्रष्टाचारी ,
नेकी की सिर्फ़ बातें होती हर कोई है व्यापारी ,
अंधभक्तों जरा मुँह तो खोलो,
राजनीति की जय बोलो।
न्याय की आँखों पर पट्टी ,
शिक्षा व्यवस्था बनी है भट्टी ,
दवाइयाँ जान ले रही हैं ,
मौत महँगी ज़िन्दगी सस्ती ,
चाहे जिसको भी चुन लो हर कोई लूटेगा बस्ती ,
आदर्शों की असल जीवन में नहीं है कोई हस्ती ,
अंधभक्तों जरा मुँह तो खोलो,
राजनीति की जय बोलो।
जय हिन्द।
जय भारत।
लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'