देख कर तेरी नज़रों में
कोई नज़ारा कभी ना
अच्छा लगा।
तेरा यूं इग्नोर कर के
मुझे देखना चुपके से
की मैं ना तुम्हें देख लूं
नज़रें चुराना मुझसे
बड़ा अच्छा लगा।
कभी कभार हम दोनों की
नज़रें अचानक लड़ना भी अच्छा लगा।
अब छोड़ दे तू यूं शर्माना
सच सच बताना मेरा अंदाजे बयां
तुझे कैसा लगा।
हम एकदूसरे को जानते तक नहीं
पहचानते तक नहीं
फिरभी जब हमनें एकदूसरे को देखा
तब जैसे एकदूसरे की लत सी लगी
एकदूसरे की दरस को बार बार जैसे तलब सी लगी।
ऐसा क्या हुआ मुझे समझ ना लगा
जब तक एकदूसरे का स्टेशन ना आया
तब तक एकदूसरे की छुप छुप कर दीदार किए।
पर जब आया अपना डिस्टिनेशन तो
फिर अजनबियों की तरह हम चल दिए।
भीड़ में फिर हम कहीं खो गए।
दो अजनबी बिन बोले सबकुछ बोल गए।
मोहब्बत का दरवाज़ा जैसे नॉक कर गए।
मुझे तो बस यही पूछना है रब से कि
या खुदा तूने दिल क्यों दिया
दिल दिया तो उसमे एहसास क्यू दिया
जब एहसास दिया तो फिर अपनी चाह
पास क्यों नहीं दिया।
या खुदा तूने चाह पास क्यों नहीं दिया...
सब टूट जाए इस जहां में मगर दिल नही
टूटना चाहिए ।
है गर सच्ची मोहब्बत जिसके दिल में तो
मोहब्बत उसको मिलनी चाहिए ।
मोहब्बत में कभी मिलावट ना हो
रिश्तों में कभी सिलावट ना हो..
कुछ मिले ना मिले जिंदगी में पर
सच्चा प्यार मिलना चाहिए ...
गर जो है सच्चा प्यार दिल में तो प्यार
मिलना चाहिए...
सच्चा प्यार ज़रूर मिलना चाहिए....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




