विश्वभर प्रताप सिंह यानि छोटा ठाकुर का रूआब पूरे गाँव में ऐसा था कि किसी ने इनकी आज्ञा नहीं मानी मतलब अगले दिन का सूरज देखना उसके लिए बिलकुल ही नामुमकिन !!
एक नम्बर का जालिम और अय्याश था छोटा ठाकुर ! गाँव के लोग तंग थे उसके व्यवहार से !
आज जब छोटा ठाकुर नदी किनारे से गुजर रहा था तो उसना देखा ..एक युवती नहा रही थी ..जिसे देखते ही उसकी नीयत बदल गई !
उसने अपने नौकर हरिलाल को बताई ये बात ..कि फलाँ लड़की आज की रात हमारे महल की दुलहन होनी चाहिए..और लाओगे तुम ! जाओ..और उस लड़की तक मेरा पैगाम पहुँचा दो..वर्ना तुम्हारी
खैर नहीं !
हरिलाल ने वैसा ही किया !
मगर वह लड़की यानि संतोषी अपने झन्नाटेदार झापड़ की रसीद उसके गाल पे चिपकाने में पल भर की देरी नहीं की !!
संतोषी ने हरिलाल को कहा...छोटा ठाकुर में हिम्मत है तो खुद मेरे सामने आये !!
अगर उसका चेहरा लाल न किया तो मैं भी संतोषी नहीं !!
जब हरिलाल ने बताई यह बात जाकर छोटे ठाकुर को तो वह सुनते ही आग-बबूला हो गया !!
और अगले दिन नदी में देख लेने की बात करके किसी आवश्यक काम में व्यस्त हो गया !!
अगले दिन सुबह से ही छोटा ठाकुर पहुँच चुका था नदी के किनारे संतोषी का अकल ठिकाने लगाने के लिए !
मगर ये क्या ??
संतोषी को नजदीक से देखते ही वह तो बुत की तरह खड़ा ही रह गया !
जब तक होश ठिकाने आया तब तक तो संतोषी नहाकर अपने घर भी जा चुकी थी !
हरिलाल हतप्रभ था छोटा ठाकुर के इस अप्रत्याशित व्यवहार को देखकर !!
हरिलाल को लगभग-लगभग समझ आ चुका था कि इस पत्थर दिल आदमी में प्रेम का कोई बीज लग गया है शायद !!
अब तो नदी का किनारा ही छोटा ठाकुर का ऑफिस और घर दोनों ही बन चुका था !!
हरिलाल का अन्दाज़ा सही था !!
दरअसल छोटा ठाकुर का दिल सचमुच आ चुका था संतोषी पर !!
आज उसने फैसला कर लिया था कि अपने दिल की बात बताकर ही रहेगा वो संतोषी को !!
मगर जैसे ही संतोषी आई सामने...छोटा ठाकुर हकलाते हुए बस इतना ही कह पाया कि क्या मेरी दुल्हन बनोगी तुम ..पूरे जीवन भर के लिए ??
संतोषी बिना कुछ बोले हँसते हुए चली गई और छोटा ठाकुर सिर्फ अ ssबss सss दss ही करता रह गया !!
अगले दिन छोटा ठाकुर हिम्मत करके बस इतना ही कह पाया संतोषी को कि तुम जैसा कहोगी...बिलकुल वैसा ही करूँगा मैं !
आज से खून-खराबा सब बंद.. जमीन के कागजात भी सभी को वापस कर दूँगा !!
बस तुम मेरा निवेदन मत ठुकराओ !!
तुम हमारा कहना मानो..हम तुम्हें अपनी ठकुराइन बना कर शान से रखेंगे !!
ताज्जुब तो तब हुआ जब एक ही झटके में संतोषी ने छोटा ठाकुर को हाँ कर दिया था !!
संतोषी की बात जब उसके घर पहुँची तो उसके माँ-बाप पूरी तरह भड़क गये !!
मगर अपनी पूरी रजामंदी के साथ अगले दो दिनों के अन्दर ही संतोषी, पूरे रीति-रिवाज से छोटा ठाकुर की अर्धांगनी बन चुकी थी !!
वादे के मुताबिक छोटे ठाकुर ने सभी के जमीन वाले कागजात वापस कर दिये थे !!
एक दिन छोटे ठाकुर ने बड़े ही प्यार से पूछा-
मैं अभी तक ये नहीं समझ पाया कि तुमने मेरा कोई विरोध क्यों नहीं किया..मेरे प्रणय निवेदन को तुमने सहर्ष स्वीकार कैसे कर लिया !!
बड़ी ही मासूमियत से संतोषी ने सटीक उत्तर दिया -
अगर मेरे एक के हाँ कहने से पूरा गाँव आतंक से बच सकता है !!
वासना में डूबे हुए व्यक्ति में मैंने जब प्रेम देखा..तभी समझ गई मैं कि शादी तो होगी ही किसी न किसी दिन किसी से. तो भला आपसे क्यों नहीं !!
अगर आप मुझे धोखा भी देंगे तो वो मंजूर है मुझे..मैं अपने गाँव की मिट्टी के लिए कुछ कर पाई..यही मेरे लिए गर्व और सुक़ून की बात है !!
छोटे ठाकुर ने उसे गले लगा लिया और प्यार से बस इतना ही कहा..पगली..तेरा मेरा साथ यानि हमारा साथ अब सात जनम का साथ !!
फिर दोनों एक-दूसरे की बाहों में खो गये !!
आज प्रकृति बहुत ही खुशगवार लग रही थी !! और हो भी क्यों ना..
दरअसल इस गाँव में एक जालिम का हृदय परिवर्तन हुआ था आज !!
एक बेटी अपने गाँव की भलाई की खातिर अपने ज़िन्दगी को ही दाँव पे लगा चुकी थी !!
लेखक : वेदव्यास मिश्र
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