1.उन्हें रिश्तों से ज़्यादा ‘रुतबा’ चाहिए होता है
शादी के साथ उन्हें बीवी नहीं,
एक “वफादार प्रॉपर्टी” मिलनी चाहिए —
जो बोले नहीं, पूछे नहीं,
और हर बात में “हाँ जी” कहे।
उनके मन में बचपन से ये बीज बोया जाता है कि:
“तू दामाद है — भगवान है”
“बीवी तेरे अधीन रहे”
“ससुराल वाले तुझसे डरें”
नतीजा: वो सम्मान नहीं, वर्चस्व चाहते हैं।
2. Emotional Labour नहीं कर सकते, लेकिन Emotional Control चाहते हैं
वो नहीं जानते कि रिश्ते emotional मेहनत मांगते हैं।
लेकिन चाहते हैं कि बीवी की सारी भावनाएं उनके नियंत्रण में रहें।
अगर बीवी थक जाए = “नाटक कर रही है”
अगर बीवी बोल दे = “ज़बान चलती है”
अगर बीवी रो दे = “इमोशनल ड्रामा”
क्योंकि खुद को कभी Feel करना सिखाया ही नहीं गया।
3.ज़िम्मेदारी से डरते हैं, लेकिन मालिकाना चाहते हैं
उन्हें बीवी से प्यार नहीं,
बीवी पर हक़ चाहिए।
जब खर्च करना हो = “मैं कमाता हूँ”
जब सम्हालना हो = “तुम औरत हो, तुम्हारा काम है”
जब शादी में कोई समस्या आए = “माँ-बाप ने कुछ नहीं सिखाया”
ऐसे दामाद रिश्ते में नहीं आते, कुर्सी संभालने आते हैं।
4. माँ से अलग नहीं हुए होते — इसलिए बीवी को माँ और नौकर दोनों समझते हैं
वो अपनी माँ से अलग नहीं हो पाते,
लेकिन बीवी से पूरी वफादारी मांगते हैं।
माँ बोले = सही
बीवी बोले = बदतमीज़ी
ऐसे में वो कभी पति नहीं बनते —
सिर्फ़ confused बेटे रह जाते हैं।
उन्हें शादी नहीं, सेवा चाहिए होती है
उन्हें एक independent woman से डर लगता है,
क्योंकि उन्होंने शादी को कभी साझेदारी नहीं समझा।
बीवी अगर अपने लिए सोच ले =“घमंडी”
अगर ना सह पाए = “संस्कारहीन”
अगर घर छोड़ दे = “चरित्रहीन”
ये वही समाज है जहाँ
दामाद रोए तो दर्द है,
बीवी रोए तो ड्रामा।
निष्कर्ष:
“दामाद बनना आसान है,
पर पति बनना — मनुष्यता की पहली परीक्षा है।”