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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जब पावस की प्रथम बूंद धरती से टकराई...

फट रहें थे होठ धरती के
जीस पावस की प्रथम बूंद
के बिना।
आज़ वह बूंद आई
धरती के अधरों पर आकर
ली नवजीवन की अंगड़ाई
कुम्हलित कलियों पर फिर
ज़वानी छाईं।
वह पावस की प्रथम बूंद
जब धरती से टकराई।
बाग बगीचे झूले गलीचे
बांध बांध गोरी हर्षाई ।
रोम रोम सिहराई।
कुहुके कोयलिया
आमवा के डालिया
पपीहरा ज़ोर लगाए।
खग मृग जंतु जांगर
मयूरिया भी नाच दिखाए ।
देखी नित नित मन सभी के
रोमांचित कर जाए।
वह पावस की प्रथम
बूंद जब धरती से टकराई।
नवजीवन की अंगड़ाई के संग
ली धरती ने अंगड़ाई ।
फिर शाम सुहानी छाई ।
ली नवजीवन ने अंगड़ाई।
गली मोहल्ले नुक्कड़ फाटक
गली गली महकाई ।
वह पावस की प्रथम बूंद
जब धरती से टकराई ।
तपण जलन धरती के
दूर भागे भाई।
शीतलता शांति की
एक अलग हीं छटा बिछाईं ।
जब पावस की प्रथम बूंद
धरती से टकराई।
ली नवजीवन ने अंगड़ाई ।
फिर खुशियों की घड़ी आई ।
जब पावस की प्रथम बूंद
धरती से टकराई ।
जब पावस की प्रथम बूंद
धरती से टकराई......




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Arpita pandey said

कुहुके कोयलिया आमवा के डालिया पपीहरा ज़ोर लगाए। बहुत खूब लिखा है आपने

डॉ कृतिका सिंह said

Utkrasht Rachna bahut khoob

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