कभी बैठो सरोवर के किनारे,
और एकाग्र हो जाना उठती मिटती लहरों से l
कभी देखो आकाश में,
और एकाग्र हो जाना उठती मिटती ध्वनि से l
कभी खो जाना हरी वादियों में,
धुप-छाव में,
और एकाग्र हो जाना उठती मिटती स्पर्श से l
कभी भटको रंगीन गुलिस्ताँ में,
और एकाग्र हो जाना उठती मिटती गंध से l
यह आनंदयात्रा है
हे भगवंत...
तुम आनंदयात्री l
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️