रूठकर हमसे श्याम सांवरे
जाना ना कभी ओ प्रियतम प्यारे।
हो जाएगा जीवन का पूर्ण शयन
बरसेंगे ना फिर प्रतीक्षारत नयन।
तेरे सिवा क्या कंचन पास
श्वास सवेरा तू ही पूर्ण आस।
झुलसे संतापों के पतझर से
मिट जाएगा बसंत अंतर से।
सिंधु तरंगों के तालों पर
नृत्य करेगी कैसे अश्रु गालों पर?
तम के रहस्य का आलिंगन
समेट लेगा सृष्टि जग कानन।
नाथ, तुम से ही रजत रश्मियाँ
प्राणवायु संचालित संपूर्ण दुनियाँ।
हृदय में बसे रहो आराध्य अनुराग
सरित प्रीत की बहती रहे अपार।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'