"ग़ज़ल"
तन्हा चाॅंद तन्हा सूरज तन्हा हूॅं मैं भी!
मुझ से बिछड़ कर ख़ुश है तू ज़िंदा हूॅं मैं भी!!
ऐसा सफ़र जिस की कोई मंज़िल नहीं होती!
उसी सफ़र पे देखो आज निकला हूॅं मैं भी!!
हम दोनों को मिलने से कोई रोक नहीं सकता!
तू है गर मिरी जान समन्दर दरिया हूॅं मैं भी!!
मेरी फ़ुर्क़त ने तुझ को बे-चैन किया होगा!
तेरी जुदाई में ऐ दिलबर! तड़पा हूॅं मैं भी!!
प्यार दिया तू ने सिवा 'परवेज़' के सब को!
हक़ मेरा भी बनता था तेरा बन्दा हूॅं मैं भी!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad