प्रभु की पहचान
गुरु के घर पहुँचे
भजन-कीर्तन,सत्संग में बैठे
ग्रन्थों से प्रभु के गुणगान सुने
ध्यान किया ,सेवा अर्पित की
ध्यान से आत्म-बल पाया
सेवा ने आत्म-समर्पण सिखाया
हर पल के लिए शुकराना करना सिखाया
तब प्रभु की कुछ भक्ति पायी
भक्ति से धूल के कण सा ज्ञान हुआ और उतने ही ज्ञान से यह जाना
कि कण-कण में रहते हैं प्रभु
यही उनकी पहचान मिली ..
वन्दना सूद