असली भाव की क़ीमत?
ओह, हाँ — पूछो ज़रा उन लोगों से,
जिन्हें भाव ही समझ नहीं आता।
मैंने दिल का बाज़ार नहीं लगाया था,
पर भीड़ यूँ जुटी जैसे कोई सेल लगी हो —
“एक सच्चा आँसू लो, दो झूठे वादे मुफ़्त!”
तुमने पूछा — “तुम इतने चुप क्यों रहते हो?”
मैं मुस्कराया — “क्योंकि सच बोलना अब अपराध है।”
हर बार जब मैंने टूटा —
लोग तालियाँ बजा कर चले गए,
कहते हुए — “वाह! क्या परफॉर्मेंस है!”
मैंने चाहा — कोई एक हो
जो मेरे खालीपन को भी पढ़ ले,
पर सबको तो बस मेरा शीर्षक चाहिए था।
अब जब मैं बिकने को राज़ी नहीं —
तो लोग कहते हैं: “ये घमंडी हो गया है।”
सच ये है कि मैंने सब कुछ दे दिया,
और अब जो बाक़ी है —
वो सिर्फ़ एक थका हुआ चुप है
जिसमें तुम अपनी आवाज़ें गूँजा नहीं सकते।
तुम क़ीमत की बात करते हो?
मैंने अपनी आत्मा तक गिरवी रख दी थी,
और बदले में मिली —
एक “Seen” की नोटिफ़िकेशन।
अब कोई पूछे — “कैसे हो?”
तो जवाब होता है —
“अभी भी इंसान हूँ, सौभाग्य से!”