New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

अमरबेल अध्याय - १ - लेखक वेदव्यास मिश्र


अमरबेल
रिटायर्ड मेजर विश्वनाथ जी का परिवार आसपास के गाँवों के लिए उदाहरण था !!

एक छोटे से स्टेशन के आगे बमुश्किल तीन किलोमीटर दूर पड़ता है उनका कस्बा मेंहदीपुर !!

पहले तो गाँव ही था जो विकास यात्रा के प्रभाव से काफी विकसित हो चुका है !!

यहाँ प्रसिद्ध है चौरसिया होटल जहाँ की जलेबी, समोसा और रबड़ी बहुत ही फेमस है !!

एक नहर है जो मेंहदीपुर के बीचों-बीच बहती है !!

इस नहर के किनारे- किनारे गुजरने पर बहुत से छायादार पौधे मन को राहत पहूँचाते हैं !!

नहाने का आनन्द तो खासकर गर्मी के दिनों में तब बहुत ज्यादा आता है जब बाँध से पानी छोड़ा जाता है विशेषकर तालाबों,पोखरों और खेतों में सिंचाई के लिए !!

हरे-भरे छायादार पौधे देखते ही मन को राहत पहुँचाते हैं ।

जब लगभग दस साल पहले मेंहदीपुर की बिटिया ब्याही गई थी हमारे शहर बैरमपुर में ..तब मेरा भी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था बाराती बनकर लड़के वालों के तरफ से ।

ख़ासकर , गर्मी के दिनों में हम सभी दोस्त जी भर के नहाये थे नहर में और खूब मजा किये थे ।

तब मैंने अचानक गौर किया था..किसी ने अमरबेल को एक-दो पौधे पर डाल दिया था जो उस समय बहुत ही सुन्दर दिख रहा था ।

उसी दिन मैंने अपने दोस्त रघुपति को कहा था..
इस अमरबेल को जिसने भी इन पौधों के ऊपर डाला है..उसने ठीक नहीं किया है ।

क्योंकि मैंने सुना है ..अमरबेल को जिस पौधे पर भी डाला जाता है..वह पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है और अमरबेल उस पौधे का खाद-पानी खींचकर स्वयं ही तरोताजा होने लगता है जो धीरे-धीरे पूरे पौधे पर फैल जाता है ।

अन्त में उस एक पौधा के खत्म होने से पहले वह आसपास के पौधों पर फैल जाता है। धीरे-धीरे सभी पौधे सूखने लगते हैं और मुरझा कर लगभग-लगभग मृतप्राय ही हो जाते हैं।

यानि अमरबेल को पौधे के ऊपर कभी भी डालना या फेंकना नहीं चाहिए !

मेरे मन में आया भी था कि अमरबेल को निकालकर फेंक दूँ मगर मेरे दोस्त रघुपति ने कहा..
छोड़ यार , हम तो मेहमान हैं यहाँ मेंहदीपुर के लिए..हमें क्या करना ।
अमरबेल बढ़े तो अपनी बला से।
चल चलते हैं..!
निकलना भी था बारात अटेन्ड करने इसलिए हम निकल गये और ये काम हमसे न हो पाया ।

लौटते समय मैंने देखा था ..रोड के किनारे-किनारे कुछ शिकारी प्रजाति के घुमन्तू परिवार बड़े से बरगद के नीचे डेरा डाले हुए थे ।

जिन्हें मेजर विश्वनाथ शर्मा जी के परिवार ने रहने के लिए जगह दिया था।

ताकि वे घुमन्तू शिकारी लोग रोज़गार करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें और जंगली जानवरों से मेंहदीपुर के लोगों की रक्षा कर सकें।

क्योंकि चारों तरफ जंगल होने की वजह से हिंसक जानवर जैसे चीता, बाघ, लकड़बग्घा का खतरा बहुत ही ज्यादा था । कभी-कभी तो शेर भी आ जाते थे मेंहदीपुर की पहाड़ियों में ।

जिसके आतंक से कर्फ्यू जैसी स्थिति निर्मित हो जाती थी और लोग अपने-अपने घरों में ही कैद होने को मज़बूर हो जाते थे।

अन्तत: कर्फ्यू में ढील तभी मिलती थी जब वहाँ बसाये गये शिकारी,उस शेर का या किसी भी हिंसक जानवर का शिकार नहीं कर लेते थे।

ठीक पहाड़ के नीचे ही ये घुमन्तू लोगों का परिवार बसा हुआ था जो धीरे-धीरे पाँच से दस और दस से बीस परिवार हो गये थे यानि ..इसी तरह लगातार उनकी संख्या बढ़ रही थी।

मेजर साहब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है कभी । दरअसल शिकारी लोग खाली पड़े जमीनों पर धीरे-धीरे कब्जा करने लगे थे। और ..यहाँ तक कि बिना पूछे ही वे पक्के मकान तक बनाने लगे थे !!

मेंहदीपुर के लोगों ने मेजर विश्वनाथ जी को समझाया कि आप अपने जमीनों से इन्हें खदेड़ें मगर ये समस्या जितनी आसान दिख रही थी..उतनी थी नहीं।

कुछ संभ्रांत लोगों को साथ लेकर जब मेजर साहब , शिकारियों के प्रमुख को समझाने गये तब उन लोगों ने मेजर साहब का खुले हृदय से स्वागत किया ।

खाटें बिछाई गईं ताकि मेजर साहब और उनके सभी दोस्त आराम से बैठ सकें ।

शिकारियों के मुखिया को मेजर साहब ने बड़े प्यार से कहा -

देखिये,
यहाँ आप लोगों को मात्र कुछ दिनों के लिए सीमित संख्या में ही रहने के लिए हमने परमिशन दिया था ।

मगर देखने में यह आ रहा है कि आप लोग मेरी बची हुई जमीन पर बेजा-कब्जा करके पक्के मकान तक बनाकर रहने लगे हैं जो किसी भी एंगल से ठीक नहीं है।

हमने फैसला किया है कि एक महीने के अन्दर ही अन्दर आप सभी लोग हमारे जमीनों को खाली करके अन्यत्र चले जायें अन्यथा... !!

अभी मेजर साहब ने अन्यथा कहा भी नहीं था ठीक से..

तभी एक युवा शिकारी अपने कुर्ते में रखे लम्बे से चाकू को निकालकर बोला...अन्यथा ssss मतलब,
क्या कर लेंगे आप लोग ??

बुजूर्ग मुखिया ने उस युवा शिकारी को डाँटते हुए मेजर साहब से कहा..

माई-बाप , ये अभी नादान है ..
इसे सही-गलत का पता नहीं है ..
इसे माफ करें और हम निवेदन करते हैं कि आप हमारी समस्या को समझें ।

हमें यहाँ से न हटायें..आप ही बताइये आखिर हम कहाँ जायें ।

आपको आश्वस्त करते हें कि अब आगे से हम एक इंच भी जमीन बेजा-कब्जा बिलकुल भी नहीं करेंगे।

लेकिन माई-बाप, जनसंख्या रोकना तो हमारे हाथ में नहीं है..ये तो ऊपर वाला देता है हमें..भला हम इसे कैसे रोक सकते हैं ।

हमारे समाज में बच्चा न लेने के जितने भी अनर्गल उपाय हैं ...उन्हें आजमाने को पाप कहा गया है ।

हमारे बच्चे बड़े होकर आपके खेतों में काम कर देंगे ।
ज़रूरत पड़ने पर हम आपके ही काम आयेंगे ।
हम हैं तो आप लोग भी जंगली जानवरों से सुरक्षित हैं ।

मेजर साहब ने दो टूक कहा-
देखो भई, मैंने ही आप लोगों को अपने खाली पड़े जमीन पर बसने की इजाजत दी थी।

ठीक है.. रहिये ।
मगर अब एक इंच भी जमीन और लिया आप लोगों ने हमारा तो आप सभी की ख़ैर नहीं ।


लेखक : वेदव्यास मिश्र



दूसरा अध्याय - पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (0)

+

काल्पनिक रचनायें श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन