
नेहा का नाम टाॅप 10 में था पिछले ही साल 12'th क्लास में ।
बहुत ही होनहार और अपने मम्मी-पापा की लाड़ली परी।
पापा पेशे से डाॅक्टर और मम्मी शहर की फेमस ब्यूटीशियन थीं।
एक शानदार ब्यूटी पाॅर्लर था नेहा के मम्मी का ..जहाँ पर हर दिन का इनकम कम से कम पाँच हज़ार था !!
घर में रूपये-पैसे की ज़रा भी कोई कमी न थी ।
यानि पूरी तरह से सम्पन्न परिवार ।
अब प्रॉब्लम था तो बस यही कि 12'th के बाद क्या ??
जो लगभग-लगभग हर 12'th पास करने वालों के लिए एक खतरनाक टास्क यही होता है !
नेहा को अब आगे क्या करना चाहिए ?
काॅलेज में एडमिशन लेकर बी.एस.सी. करनी चाहिए या पी.एम.टी.पास कर डाॅक्टरी लाइन में आगे जाना चाहिए..पूरी तरह बेताल पच्चीसी के जैसा खतरनाक सवाल..या तो उत्तर दो. अगर न दो तो सर फूटे ।
अन्तत: फैसला यही हुआ कि एक साल का ड्राप लेकर वह कोटा में कोचिंग ही करेगी !!
अब ये किसकी विशेष इच्छा थी..यह कहना बहुत मुश्किल था मगर परिवार की औसत इच्छा यही थी कि डाॅक्टर चौबे जी की बिटिया अपना फ्यूचर डाॅक्टरी में ही तलाशेगी !
अब नेहा पहुँच चुकी थी खुशी-खुशी.. कोचिंग कल्चर के महासागर की दुनिया में..जहाँ डूबते ज्यादा हैं और निकलते बहुत ही कम हैं !!
कई तो बनने कुछ और जाते हैं और बनकर कुछ और ही आते हैं बिलकुल फिल्म! दुनिया की तरह !
एक ऐसी जगह है कोटा,
जहाँ इन्सान खुद को बहुत ही बौना समझने लगता है क्योंकि यहाँ सपने सातवें आसमान पर पहुँच जाते हैं !
यहाँ स्टूडेंट की मानसिकता अपने ग्रह को छोड़कर सीधे ब्रम्हांड की परिधी पर पहुँच जाती है !!
शुरू के पहले हफ्ते से ही नेहा को यह फील होने लगा था कि वह तो कुछ भी नहीं जानती यहाँ के हिसाब से यानि टाॅपर होकर भी फिसड्डी है इस शहर में !!
क्योंकि यहाँ तो एक से बढ़कर एक टाॅपर हैं और कोचिंग टीचर के मोटिवेशन का कहना ही क्या !!
उनका मोटिवेशन तो इतना तगड़ा है कि
अगर बस चले उनका तो पिचाई जैसे लोगों को भी हताश कर दें ये लोग क्योंकि..इनकी शुरूआत ही होती है इस टाॅपिक से कि..पिचाई साहब ,आपके अन्दर इतनी ऊर्जा है कि गूगल वगैरह तो बहुत ही छोटी जगह है ! संभावनायें तो प्लूटो जैसी जगह में भी है ! आप वहाँ क्यों नहीं जाते !
इनमें से आधे से अधिक लोग असफल कोचिंग टीचर हैं जो स्वयं सफल नहीं हो पाये !
हर बात में पैकेज है यहाँ..खाने का..पढ़ने का..अलग से पढ़ने का..रहने का ..सबका पैकेज !
लगभग हर मोटिवेशन यहीं से शुरू होता है..
छू ले तेरी जमीं और तेरा आसमां क्योंकि उड़ान पंखों से नहीं होती..हौसलों से होती है......वगैरह-वगैरह ।
आगे पढ़ें - साॅरी मम्मी..साॅरी पापा !! - अध्याय - २ - हमारी तो मार्कशीट ही तू है.. - वेदव्यास मिश्र
लेखक : वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




