कविता - अपना बखत न आया....
सोचा बच्चे छोटे हैं इन्हें
लिखाएंगे पढ़ाएंगे
बाद में वे बढ़े हो कर ढंग की
नोकरी लग जाएंगे
तब हमारा बख्त आएगा
मगर आया नहीं
घूमना फिरना हमने
तब भी पाया नहीं
फिर सोचा चलो बच्चों की होगी
शादी उनके बच्चे होंगे
फिर जा कर मस्त से
घूमेंगे और फिरेंगे
तब हमारा बख्त आएगा
मगर आया नहीं
घूमना फिरना हमने
तब भी पाया नहीं
फिर सोचा बच्चों के
बच्चे लिखेंगे पढ़ेंगे
भविष्य में जा कर
वे आगे को बढ़ेंगे
तब हमारा बख्त आएगा
मगर आया नहीं
घूमना फिरना हमने
तब भी पाया नहीं
बच्चे और उनके बच्चों का
भविष्य बनाते बनाते
उन सभी को देख
आगे बढ़ाते बढ़ाते
सारा जवानी सारा
उम्र गुजर गया
अपना बख्त तो
कभी भी नहीं आया
अपना बख्त तो
कभी भी नहीं आया.......