[बाल कविता]
घर में सबने खाए आम
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पापा जी जो लाए आम ।
घर में सबने खाए आम ।।
खाकर आया मज़ा बहुत
पीले - पीले थे अद्भुत
लखनौवा चौसा देशी
तरह-तरह के आए आम ।
घर में सबने खाए आम ।।
सोच रहे हो क्या मन में
बहुत विटामिन है इनमें
लंगड़ा तोता सोन परी
और दशहरी भाए आम।
घर में सबने खाए आम ।।
लदी बाग में जाते जब
धीरे से बतियाते तब
लगे टपकने डालों से
मीठे बहुत सुहाए आम।
घर में सबने खाए आम ।।
गाँव शहर बाजारों में
गलियों में चौबारों में
सोंधी खुशबू से भर कर
मंद-मंद मुस्काए आम ।
घर में सबने खाए आम ।।
डालों में जब सजते हैं
खिल खिल खिल खिल हँसते हैं
हौले-हौले हाथ हिला कर
सबको पास बुलाए आम।
घर में सबने खाए आम ।।
आँधी में जो भी टूटे
थोड़े चटके या फूटे
दादा कहते भूसे में
कच्चे बहुत पकाए आम।
घर में सबने खाए आम ।।
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✓राम नरेश 'उज्ज्वल'
उज्ज्वल सदन
मुंशी खेड़ा,(अपोजिट एस-169
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