अगर मैं पति होती,
तो पत्नी को ‘धर्म’ नहीं,
‘सम्मान’ देती,
उसे ‘कर्तव्य’ नहीं,
‘अपनापन’ देती!
वो चाहे घूँघट में हो या खुले बालों में,
मैं उसके होने की चमक को पहचानती,
वो चाहे पायल बाँधे या जूते पहने,
मैं उसकी हर चाल पर नाज़ करती।
“अगर वो गृहिणी होती…”
अगर वो घर सँभालती,
तो मैं कहता—
“तुम सिर्फ़ चूल्हे की आग में मत जलो,
अपने सपनों की रोटी भी सेंको!”
अगर वो पूरे दिन घर सँवारती,
तो मैं उसके श्रम को पहचानता,
“ये केवल बर्तन-झाड़ू नहीं,”
“ये घर को मंदिर बनाने की साधना है!”
अगर वो बच्चों को पालती,
तो मैं हर रात उसके थके हाथों को चूमता,
“तुम केवल माँ नहीं, मेरी शक्ति हो!”
“तुम्हारे बिना, मैं भी अधूरा हूँ!”
“अगर वो वर्किंग होती…”
अगर वो दफ्तर जाती,
तो मैं उसका हौसला बनता,
“क्यों अकेली तुम लड़ो, मैं भी तुम्हारे साथ हूँ!”
“ये समाज कहे, वो कहे, पर तुम कभी मत रुको!”
वो जब थककर लौटती,
तो मैं चाय लेकर खड़ा रहता,
“सिर्फ़ पत्नी ही क्यों? पति भी तो संबल बन सकता है!”
अगर उसका प्रमोशन होता,
तो मैं सबसे पहले ताली बजाता,
“तुम मेरी जीत नहीं,
तुम मेरी प्रेरणा हो!”
“प्यार ऐसा हो कि…”
प्यार ऐसा हो कि
वो हर सुबह आँख खोलते ही मुस्कुराए,
हर रात सोने से पहले भगवान को धन्यवाद दे,
“हे प्रभु, हर जन्म में यही पति देना!”
वो अपने भाग्य पर इतराए,
क्योंकि मैंने उसे सिर्फ़ पत्नी नहीं,
एक दोस्त, एक साथी, एक आत्मा का हिस्सा माना!
“मगर इस जन्म में…”
मगर इस जन्म में मैं लड़की हूँ,
जो निभाना जानती है,
जिसे सिखाया गया है—
“त्याग ही नारी का गहना है!”
“समर्पण ही स्त्री की पहचान है!”
तो हे भगवान, अगले जन्म में
मुझे पुरुष बना देना,
ताकि मैं दुनिया को दिखा सकूँ—
पति होना सिर्फ़ कमाने वाला होना नहीं,
बल्कि एक सच्चा साथी होना है!
“मैं बनूँगा ऐसा पति,”
“जिसके साथ हर स्त्री न सिर्फ़ पत्नी होगी,”
“बल्कि अपने अस्तित्व की सम्पूर्णता पाएगी!”