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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

अमरबेल अध्याय - 2 - लेखक वेदव्यास मिश्र

कहानी में अब तक आपने पढ़ा :- विश्वनाथ जी जो एक रिटायर्ड मेजर हैं उन्होंने गांव में जंगली जानवरो से सुरक्षा के लिए कुछ शिकारियों को अपनी जगह में रहने की अनुमति देदी। सब कुछ ठीक था समय बीत रहा था तभी उनको पता चला कि शिकारियों ने धीरे धीरे करके उनकी जगह पर कब्ज़ा बढ़ाना शुरू कर दिया है एवं अस्थयी मकानों की जगह पक्के मकान बनाकर कब्जे की जमीं को बढ़ाते जा रहे हैं - इस बात को संज्ञान में लेकर मेजर साहब शिकारियों के पास जाते हैं और उनके मुखिया से बात चीत करते हैं - पिछले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।



कहानी जारी होती है :-
अमरबेल
अचानक वह बुजूर्ग मुखिया का तेवर बदल गया और सख्त लहज़े में कहा ..मेजर साहब, आप तो चढ़े ही जा रहे हैं हमारे सर पर..
आज के बाद आप हमें नहीं , बल्कि हम देखेंगे कि हमें आखिर रोकता कौन है ।

आप लोगों को हमने इज्जत दी..आपकी बातें सुनी |

मगर अब अगले पाँच मिनट में आप लोग यहाँ से नहीं गये तो एक भी आदमी यहाँ से जिन्दा वापस नहीं जा पायेगा !!

समय की नाज़ुकता को भाँपते हुए मेजर साहब ने बस इतना ही कहा-
ठीक है, आप लोगों को समझाना ही बेकार है !
ठीक है...हम लोग चलते हैं। अब अगली मुलाक़ात कोर्ट में ही होगी ।

मेजर साहब अन्तत: कोर्ट की लड़ाई हार चुके थे ।
सुनने में आया है कि शिकारी लोग धीरे-धीरे मार-काट में उतर चुके थे ।

मेंहदीपुर में मेंहदी की जगह खून का रंग गाढ़ा होने लगा था ।

कस्बे के बहू-बेटियों को छेड़ना,बलात्कार करना आम बात हो गई थी ।

अब पूरे कस्बे पर शिकारी लोगों का ही राज है !!

शिकारियों से तंग आकर स्थानीय लोगों ने कस्बा मेंहदीपुर ही छोड़ दिया है ।

इस बार किसी काम से जाना हुआ तो मैंने देखा कि चौरसिया होटल में गोश्त बिक रहा था ।

नहर के किनारे जितने भी हरे-भरे पौधे थे ,उन्हें अमरबेल ने पीला ही पीला करके रख दिया है।

सुना है, आज ही हमारे बैरमपुर में भी कुछ शिकारी बरगद के नीचे डेरा डाले हुए हैं ।


लेखक : वेदव्यास मिश्र


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

डॉ कृतिका सिंह said

कहानी की रूपरेखा बहुत सुंदर Vishay Vastu ka चयन भी एक अच्छी कहानी निकल कर आई

वेदव्यास मिश्र said

डॉ कृतिका सिंह जी, मुझे खुशी के साथ अपार सन्तुष्टि इस बात की है कि आपने अपना कीमती समय दिया मेरी कहानी "अमरबेल " को !! आपको कहानी पसंद आई, ये मेरे लिए अनमोल है !! आपकी खूबसूरत उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मुझे अगली कहानी लिखने के लिए निश्चित ही प्रेरित करती है !! सादर अभिवादन आभार एवं नमस्कार 🙏💜💜🙏

अमित श्रीवास्तव said

Bahut Achhi Kahani mahoday, Aap kavita hon ya kahani dono ke madhyam se sandesh dene me maahir hain, yahi ek achhe sahitykar kahanikaar or kavi ki pahchan hoti hai. ummid hai aage isi prakar padhne ko milta rahega. meri rachna par aapki pratikriya ke liye pratiksharat hun.

वेदव्यास मिश्र said

Amit Shrivastav जी, अहोभाग्य श्रीवास्तव जी, जो इतनी उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया मिली आपकी !! सचमुच उत्साहित हूँ और आनन्दित भी हूँ आपकी प्यार और अपनेपन भरी प्रतिक्रिया पाकर !! मुझे ऐसा लगता है जैसे बहुत ही खास दोस्तों के साथ हूँ !! सधन्यवाद आभार बन्धु !! नमस्कार !! मैं अभी आपके पोस्ट की ओर जा रहा हूँ !!🙏🙏💜💜🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

Amit Shrivastav जी, मैं आपके पोस्ट तक अभी नहीं पहुँच पा रहा हूँ ! मगर बहुत जल्द पहुँचुँगा आपके पोस्ट पर !! 🙏☝

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