कहानी में अब तक आपने पढ़ा :- विश्वनाथ जी जो एक रिटायर्ड मेजर हैं उन्होंने गांव में जंगली जानवरो से सुरक्षा के लिए कुछ शिकारियों को अपनी जगह में रहने की अनुमति देदी। सब कुछ ठीक था समय बीत रहा था तभी उनको पता चला कि शिकारियों ने धीरे धीरे करके उनकी जगह पर कब्ज़ा बढ़ाना शुरू कर दिया है एवं अस्थयी मकानों की जगह पक्के मकान बनाकर कब्जे की जमीं को बढ़ाते जा रहे हैं - इस बात को संज्ञान में लेकर मेजर साहब शिकारियों के पास जाते हैं और उनके मुखिया से बात चीत करते हैं - पिछले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
कहानी जारी होती है :-

अचानक वह बुजूर्ग मुखिया का तेवर बदल गया और सख्त लहज़े में कहा ..मेजर साहब, आप तो चढ़े ही जा रहे हैं हमारे सर पर..
आज के बाद आप हमें नहीं , बल्कि हम देखेंगे कि हमें आखिर रोकता कौन है ।
आप लोगों को हमने इज्जत दी..आपकी बातें सुनी |
मगर अब अगले पाँच मिनट में आप लोग यहाँ से नहीं गये तो एक भी आदमी यहाँ से जिन्दा वापस नहीं जा पायेगा !!
समय की नाज़ुकता को भाँपते हुए मेजर साहब ने बस इतना ही कहा-
ठीक है, आप लोगों को समझाना ही बेकार है !
ठीक है...हम लोग चलते हैं। अब अगली मुलाक़ात कोर्ट में ही होगी ।
मेजर साहब अन्तत: कोर्ट की लड़ाई हार चुके थे ।
सुनने में आया है कि शिकारी लोग धीरे-धीरे मार-काट में उतर चुके थे ।
मेंहदीपुर में मेंहदी की जगह खून का रंग गाढ़ा होने लगा था ।
कस्बे के बहू-बेटियों को छेड़ना,बलात्कार करना आम बात हो गई थी ।
अब पूरे कस्बे पर शिकारी लोगों का ही राज है !!
शिकारियों से तंग आकर स्थानीय लोगों ने कस्बा मेंहदीपुर ही छोड़ दिया है ।
इस बार किसी काम से जाना हुआ तो मैंने देखा कि चौरसिया होटल में गोश्त बिक रहा था ।
नहर के किनारे जितने भी हरे-भरे पौधे थे ,उन्हें अमरबेल ने पीला ही पीला करके रख दिया है।
सुना है, आज ही हमारे बैरमपुर में भी कुछ शिकारी बरगद के नीचे डेरा डाले हुए हैं ।
लेखक : वेदव्यास मिश्र
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