व्यर्थ की हलचल यहां पर आजकल
शहर क्या जंगल यहां पर आजकल।।
बस तरसती नेह को प्यासी नदी ख़ुद
ठहरा हुआ है जल यहां पर आजकल।।
आग का दरिया भी होता पार कर लेते
सिर्फ है दलदल यहां पर आजकल ।।
वादियों में गूंजती हैं ख़ौफ़ की मायूसियाँ
मौत है पल पल यहां पर आजकल ।।
कातिलो को दास अब तो सजा मिले
दिल है हर घायल यहां पर आजकल ।।