तेज़ बारिश में भीग रहा हूँ
हाथ में छाता है, पर खोल नहीं पा रहा हूँ
धन है पास, पर भूख नहीं लगती
आँखों में है सब, पर देखने की चाह नहीं बचती
हाँ, मैं हूँ दुष्यंत चौटाला
उदास हूँ, निराश हूँ, बेचैन और हताश हूँ।
कभी था मैं पार्टी का किंगमेकर
लोगों की आशा, विश्वास का संग्राम
पर अब खुद ही गिर पड़ा हूँ
धराशाई, खो दिया है सब कुछ मैंने
क्या जवाब दूं मैं कार्यकर्ताओं को
जब खुद ही हार चुका हूँ मैं?
हाँ, मैं हूँ दुष्यंत चौटाला
बारिश की बूंदों में ढूंढता हूँ सुकून
इन नतीजों ने छीन लिया सब कुछ मेरा।
प्रतिष्ठा, विश्वास, सब धूधली सी हुई
अब खड़ा हूँ अकेला, शर्मिंदा और व्याकुल
मेरी बर्बादी की दास्तां सुनाई देती
कागज़ नहीं, पत्थरों पर खुदी जाती
हाँ, मैं हूँ दुष्यंत चौटाला
भीगने दो मुझे, बारिश अब मेरी साथी है।
पर हार मानूं ये मुमकिन नहीं
फिर उठूँगा, फिर खड़ा करूँगा खुद को
जनता की आवाज बनकर लड़ूँगा
अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध
फिर विजय का शंखनाद होगा
फिर से चमकेगा मेरा नाम
हाँ, मैं हूँ दुष्यंत चौटाला
नहीं रुकेगा मेरा अभियान।
आत्मविश्वास, परिश्रम, और साहस से
फिर से जीतूँगा, फिर पाऊँगा सम्मान
अब मुख्यमंत्री बनूँगा, संवारूँगा राज्य अपना
हाँ, मैं हूँ दुष्यंत चौटाला
नहीं थमेगा मेरा अभियान!
प्रतीक झा 'ओप्पी'