स्वर्ग से सुंदर था वो जीवन,
निश्छल भाव और सच्चा मन,
धूल धूसरित वस्त्र और बदन,
फिर से लोट सकूँ मैं घर-आँगन,
काश! लौट आए फिर बचपन।
माँ की गोदी, बाबा का प्यार,
आँगन की धूल वो घर-द्वार,
खेल, खिलौने, साथी वो संसार,
भरा था सब में सिर्फ अपनापन,
काश! लौट आए फिर बचपन।
गाँव, गली और वो चौबारा,
लगता था सब कितना प्यारा,
लौट कर खेलूँ सारे खेल दोबारा,
मिल जाए फिर जो बालमन,
काश! लौट आए फिर बचपन।
खाली जेब, बड़े-बड़े सपने,
लड़ते, झगड़ते पर सब अपने,
मिलकर लगते थे सब चहकने,
लौटा दो वे दिन ले लो सारा धन,
काश! लौट आए फिर बचपन।
🖊️सुभाष कुमार यादव