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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

काश! लौट आए फिर बचपन

स्वर्ग से सुंदर था वो जीवन,
निश्छल भाव और सच्चा मन,
धूल धूसरित वस्त्र और बदन,
फिर से लोट सकूँ मैं घर-आँगन,
काश! लौट आए फिर बचपन।

माँ की गोदी, बाबा का प्यार,
आँगन की धूल वो घर-द्वार,
खेल, खिलौने, साथी वो संसार,
भरा था सब में सिर्फ अपनापन,
काश! लौट आए फिर बचपन।

गाँव, गली और वो चौबारा,
लगता था सब कितना प्यारा,
लौट कर खेलूँ सारे खेल दोबारा,
मिल जाए फिर जो बालमन,
काश! लौट आए फिर बचपन।

खाली जेब, बड़े-बड़े सपने,
लड़ते, झगड़ते पर सब अपने,
मिलकर लगते थे सब चहकने,
लौटा दो वे दिन ले लो सारा धन,
काश! लौट आए फिर बचपन।
🖊️सुभाष कुमार यादव




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

श्रेयसी said

बचपन की याद आ गई। बहुत सुंदर रचना 👌👌🙏🙏

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद श्रेयसी जी।🙏🙏🙏

Lekhram Yadav said

बहुत खूबसूरत रचना सुभाष जी, सुप्रभात सहित सादर नमस्कार

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद आदरणीय यादव सर जी।🙏🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar rachna Adarneey Yadav ji, sarpratham Saadar Pranam 🙏🙏, aapki rachna padhkar aisa mahsoos hota hai jese "नहीं चाहिए - यौवन जीवन, लौटा दो, मेरा बचकाना, नहीं चाहिए - अरबों खरबों, देदो मुझको, बस आठाना"

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद पचौरी सर जी। बिलकुल सही कहा आपने।🙏🙏

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