यह कालचक्र देखो
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात"
ये कालचक्र देखो, कैसा है चलता,
अपनी ही धुन में, कभी नहीं थकता।
तुम्हें भी है उड़ना इसी के साथ,
मंज़िलें मिलेंगी, पकड़ो बस हाथ।
ज़मीन पर लिखो तुम अपनी कहानी,
हर संघर्ष बनेगा उज्ज्वल निशानी।
जो राहों में तुमने पसीना बहाया,
वही कल तेरा सुंदर सवेरा कहलाया।
हर पड़ाव पे कुछ छोड़ते चलो तुम,
प्यार के, मेहनत के, सच्चे करम तुम।
ये जीवन की यात्रा है लंबी और गहरी,
हर पल में है छिपी एक सुनहरी।
जो आज तुम जीओगे, वो कल चमकेगा,
तेरी मेहनत का रंग तब दमकेगा।
वक़्त तो चलता रहेगा अपनी ही चाल,
तुम्हारे निशाँ देंगे सुंदर ख़याल।
इसलिए चलते रहो, निशान बनाते रहो,
अपने उज्जवल कल को तुम खुद सजाते रहो।