वक़्त पर लिखे अशआर
गर्दिश -ए- वक़त ने बदल डाला ,
मुझमें मुझसा सा अब कुछ नहीं बाक़ी ।
वाक़िफ़ नहीं है कोई
हालात ए वक़्त से ,
किस मोड़ पर कहां
रूला दे ये ज़िंदगी ।
समझा दिया है वक़्त ने
दुनिया का फलसफ़ा ,
हमको भी अब किसी से
शिकायत नहीं रही ।
ज़िंदगी नाम बस इसी का है ,
लौट कर वक़्त फिर नहीं आता ।
वक़त ने खो दिया जिसे शायद ,
अपनी तस्वीर देख कर रोये ।
एक सा कुछ कभी नहीं रहता ,
वक़्त तबदीलियां भी लाता है ।
अहमियत उसको हम नहीं देते ,
वक़्त गुज़रे तो फिर गुज़र जाए ।
उससे फिर उसका रब भी फ़रामोश हो गया ,
जो वक़्त के सवाल पर ख़ामोश हो गया ।
छीन लेता है साथ अपनों का ,
वक़्त वो बे'रहम लुटेरा है ।
वक़्त के साथ सब बदलता है ,
तअज्जुब हमको अब नहीं होता ।
वक़्त मुट्ठी में बंध नहीं सकता,
उम्र अपना निशान छोड़ेगी ।
वक़्त का काम है गुज़र जाना ,
ख़्वाहिशे कब तमाम होती हैं ।
कुछ भी रहता नहीं है यादों में ,
वक़्त लम्हों में बीत जाता है ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद