दिया तले अंधेरा तो सुना ही होगा,
इस बार की दिवाली में भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा,
कई घरों की रौनकें तो थी ही चकाचौंध करने वाली,
मगर कुछ घरों में ये दिवाली बेनूर ही रहा होगा,
हां बटीं होंगी मिठाइयां कितने ही घरों में,
हुई होगी आतिशबाज़ियां कइयों के आसमान में,
मगर इस बार भी कुछ आसमान सुना ही रहा होगा,
कई मांओं की आंखों में तो रही ही होगी चमक खुशियों की,
मगर निराशा से निहारते आसमां को बच्चे जिनके!
कुछ मायें ऐसी भी रही होंगी,
मगर हां मां को इतनी तो तसल्ली रही ही होगी,
कि अगली बार फिर आयेगी दिवाली,
तब बच्चों के एक हाथ में होंगी फुलझडियाँ और दूजे में होगी मिठाई की थाली,
तब अपने भी आंगन में दीप जलेंगे,
अपनी भी खुशियों के मेले लगेंगे,
अपने भी आंगन में बिखरेंगे रंग हजार,
फिर आएगा जब ये दीपावली का त्यौहार,
ये सोचकर तसल्ली तो दिल को मिल ही जाएगी,
हां दिवाली के नाम पर इनके भी आंगन में एक दीपक तो जल ही जाएगी,
मगर इस वैभवशाली देश में दिवाली के जैसे दिवाली इन गरीबों के घर में आखिर कब आएगी..?
---कमलकांत घिरी.✍️

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




