लफ़्ज़ों के तूफ़ानों में ख़ामोशियाॅं छा गई,
ख़्वाहिशों के सफ़र में तन्हाईयाॅं भा गई।
साॅंसों की आवाज़ें उतरने लगी है दिल में,
आ गई, आ गई अब है खुशियाॅं आ गई।
चाहतों का सिलसिला छूने लगा है मुझे,
अब ये ज़िंदगी मुकम्मल दास्तां पा गई।
नीले आसमाॅं में उड़ने लगी है ज़िंदगी,
शबनम की बूॅंदों में ख़ुद को समा गई।
आहटें सीने में मेरे अब घर करने लगी,
दस्तकें फ़िक्र की मुझे ख़ुद से मिला गई।
~रीना कुमारी प्रजापत