मन मुआफिक आबो हवा मुमकिन नहीं कभी
हर मरज की हो एक दवा मुमकिन नहीं कभी
बस ढूंढ़ते रह जायेंगे उसका यहां हम तो निशां
लौट खुद आए बिखरी सदा मुमकिन नहीं कभी
अहसास कर सकते हैं मगर देख छू सकते नहीं
सबको नजर आ जाये खुदा मुमकिन नहीं कभी
रोशनी कुछ मिल रही है जुगनूओं की फ़ौज से
चाँदनी बिन चाँद आये जरा मुमकिन नहीं कभी
यह जरखरीद गुलाम है“दास” हरदम होशियार
मेरे साथ आ जाये नाम तेरा मुमकिन नहीं कभी