नव वर्ष और चिंतित मन
इतरा रहे हैं नादान
नया साल मनाने के लिए
हम इस फ़िक्र में लगे हैं
एक उम्मीद और कम हो गई
हमारी मंजिल पाने के लिए ।।
सफर में आगे बढ़ते हुए
हमें ये चिंता खाए जा रही है
एक बरस कम हो गए उम्मीद के
ये बात मन को सताए जा रही है ।।
खुशियां सब को दे रही यह साल नया
मुझको दे गया इक ये सवाल नया
कि पूछ रहा है अंतर्मन मेरा
क्या तूने पाया ऐसा
जो मना रहा है जश्न नया ।।
- तुलसी पटेल