सूरज की उजली धूप सी सूरत
मनमोहक स्वरूप सी मूरत
तुम मेरी हो या कहूँ छलावा
शब्दों से मौन अदृष्य विभूषण
घुसपैठिया बन कर आई तुम
मृगतृष्णा सी दिल पर छाई तुम
जीवनभर की पूँजी परिपूर्ण
मन मंदिर की स्वप्न विभूषण
घुप्प अँधेरे में चमके जुगनू सी
आतुर लगती बेहद प्यासी सी
हर्षित मन वेग 'उपदेश' अबोध
धारणाओं में कैद विभूषण
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद