शायद, सच एक वो आईना हो सकता है,
जो अपने प्रतिबिम्ब को छुपाने में कईं वर्ष लगा सकता है,
इसलिए नहीं कि वो ग़लत है,
इसलिए कि उसकी कीमत है,
उसकी पहचान आपको करना आना चाहिए,
उसके लिए आप जितना संघर्ष करने की सोचोगे,
वो उतना ही दुर्लभ बनता जाएगा,
सच मतलब सहज स्वीकार,
आपने भी तो झूठ को सहज स्वीकार किया है,
पर सच तो हम सब जानते हैं,
फिर दिखावा किस बात का,
कोई बात ग़लत है तो उसको सही साबित करना,
ये झूठ है,
झूठ के लिए आप अपना स्वाभाविक रुप भूल जाते हो,
इतनी मशक्कत क्यों और किसके लिए,
इससे दिलासा तो मिल जाएगा,
पर परिणाम घातक होगा,
क्या मतलब,
होगा ये ही ,ये तो पता है झूठ को भी
झूठ को भी डर है कि,
उसका सच सामने आ जाएगा,
जब झूठ अपनी सहज प्रवृत्ति नहीं खो रहा तो,
मानव इतना बलवान हो गया कि सच को चुनौती दे,
दे भी तो कितने दिन चलेगा मानव और उसका भ्रम,
मनुष्य के लिए ये चुनौती है कि कभी भी वह अपना मज़ाक नहीं बनने देना चाहता,
चाहे वो खुद मज़ाक बनकर रह जाए,
शर्मिंदा करना है तो सच को करें,
भला हम झूठ से दगाबाजी क्यों करें,
कितने दिन से हम मेहनत कर रहे हैं,
बेचारे झूठ को बचाने के लिए।।
- ललित दाधीच।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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