मुतफ़र्रिक़ अश'आर---
कितनी बेचैनियां सताती हैं,
कश्मकश दिल की क्या कहे कोई।
लग़ज़िशें दिल ये कर नहीं सकता,
भूलना तुमको थोड़ी मुमकिन है।
तेरी ख़सलत को देख कर तुझसे,
कोई उम्मीद हम करें कैसे।
याद 'रब' को भी कर लिया कीजे।
इतने मसरूफ़ मत रहा कीजे।
शिद्दतों का ख़ुमार है शायद,
अक्स तेरा जो ख़ुद में देखा है।
दिल को यूं भी सुकून देते हैं।
तेरी तस्वीर देख लेते हैं।
शाइरी का अगर हिसार पढ़ो।
मेरे अशआर बार - बार पढ़ो।
ख़ुद को महदूद करके वो आख़िर,
ख़त्म अपना वजूद कर बैठा।
तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
हमने आवाज़ देके देखा है।
डॉ० फ़ौज़िया नसीम 'शाद'


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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