वास्तव में,
वास्तविकता की ओर जीवन में।
अग्रसर होना चाहते हैं,
हम सभी मगर।
असफलता हाथ लगती है,
जब।
निराश हो जाता है,
निश्छल मन तब।
जीवन के प्रति,
हमारा उत्साह।
फीका सा पड़ चाहता है,
जैसे प्रवाह ।
चारों ओर नजर आता है,
झूठ का ही बोलबाला ।
और सत्य खड़ा मौन,
लेकर अपना आंतरिक प्रतिशोध।
क्षण प्रतिक्षण,
उसे निहार रहा हो।
एकांत में खड़ा ऐ!"विख्यात"
न्याय को पुकार रहा हो।