अनजाने में जो ख़्वाब देख लिए थे
उसके साथ जीने के मैंने, आज वो ख़्वाब टूटकर कुछ यूं बिखरेंगे
सोचा न था मैंने।
ख़्वाब तो ख़्वाब होते हैं,
फिर क्यों इन्हें हक़ीक़त में बदलने की
सोच लिया था मैंने।।
आज उसके इस बर्ताव से मैं बिल्कुल टूट गई थी,
आज उसके बर्ताव से मैं टूटकर बिखर गई थी।
जब पता लगे उसके मनसूबे
तो टूटकर मैं ख़त्म हो गई थी।।
ना जाने क्यों उसने ऐसा सिला दिया,
ना जाने क्यों उसने मुझे यूं रूला दिया।
लगता है, शौक है उसे मुझे दर्द देने का,
तभी तो उसने मुझे यूं भुला दिया।।
दरकिनार उसने मुझे कुछ यूं किया,
जैसे दूध में से किसी ने मक्खी को निकाल दिया।
इतनी दग़ाबाज़ी की क्यों उसने मेरे साथ,
क्यों मुझे यूं टाल दिया।।
दिखने में वो कितना मासूम था,
पर दिल से वो मासूम ना था।
हम नादान थे समझे उसे कुछ और,
पर वो तो कुछ और ही था।।
- रीना कुमारी प्रजापत