समंदर सीपियाँ लाया कहाँ से,
जुबां पर बात ये आयी कहाँ से l
हर तरफ घरों में खिड़कियां हैं,
परेशाँ हैं सभी निकलें कहाँ से l
साँपों के साथ रहने का असर है,
किसको काटें,विष उगलें कहाँ से l
जो चल पाए नहीं सीधी राह पर,
वहीं कहते हैं बिगड़े हम कहाँ से l
हमीं से प्यार और नफरत रहा है,
जिस्म को दो बनायें हम कहाँ से l
पूछते हाल जब लबों पे ताले हैं ,
उन्हें आता ये हुनर जाने कहां से l
फिजां में हर तरफ तन्हाईयां हैं,
आप मुस्कान ले आए कहाँ से l
विजय प्रकाश श्रीवास्तव (c)