निर्बल में बल भरना दाता,
लड़ने को नहीं सब सहने को,
जीभ को जीवन दे देना,
कहने को नहीं चुप रहने को,
बुद्धि को तत्सम कर देना,
मन मन्दिर संगम कर देना,
रस रूप में हमको जल देना,
बस जलधारा सा बहने को,
हम हंसी त्याग कर जी लेंगे,
बस चेहरा मुस्काता करना,
भूखे को भोजन दे पाएं,
वरदान अन्नदाता करना,
हाथों के छाले सह लेंगे,
कदमों के जाले सह लेंगे,
सब सह लेंगे हम रह लेंगे,
बस संयम गहराता करना,
रह जाएं अकेले खेद नहीं,
शत्रु तथ मित्र में भेद नहीं,
सम्वेद नहीं प्रतिवेद नहीं,
सत सदा सत्ययोगी करना,
हमें महाकष्टभोगी करना,
रहे कठिन कथानक कितना भी,
संघर्ष भयानक कितना भी,
हमें पर पीरा रोगी करना,
सब तक सुखमन्त्र पहुंचना है,
सबका सुख मेरा वर होगा,
न शक्ति न धन न सम्पत्ति,
ये प्रकृति मेरा घर होगा,
हम वचन खोलते हैं सबमें,
सम्मान की आशा न होगी,
न नाम की भूख गुमनाम रहें,
अभिमान पिपासा न होगी,
अपमान गरल सा पी लेंगे,
अंजान की आशा न होगी,
कोई कैसा क्या कुछ भी कर दे,
अमर्यादित भाषा न होगी,
पराजित जितनी बार भी हों,
जय की अभिलाषा न होगी,
पराजित जितनी बार भी हों,
जय की अभिलाषा न होगी,
हम वनजीवन में नवजीवन से,
वन को भी नव कर लेंगे,
हम आदिकाल से आदि जानकर,
सभी जरूरत भर लेंगे,
विद्यालय जो न मिल पाया,
जनजीवन विद्या कर लेंगे,
एकांतवास अज्ञातवास,
वनवास तपस्या कर लेंगे,
हम सत्य के साधक हठयोगी,
हम कठिन परीक्षा देते हैं,
हम सर्वसुलभ तत् सर्वजगत,
के सुख की इच्छा लेते हैं,
हम प्रेम की रीति को बदलेंगे,
और प्रेम की नीति चलाएंगे,
क्रोधित उच्चारन न करना,
डरते हैं हम डर जाएंगे,
बस इतना वर देना दाता,
के अन्न सदा अक्षय होए,
हो असुर अघोरी अथ दुर्जन,
कोई भी भूखा न सोए,
मेरे कबिरा के और सबके,
अतिथि की मर्यादा रखना,
कोई भूखा न जा पाए,
इतना घर में ज्यादा रखना,
हे अन्नपूरना श्री माहे,
श्री वर सब हर हर घर देना,
हम अज्ञानी न पथ भटकें,
हमको इस डर का वर देना,
और तरन-तार कर देना सब,
सबकी बुद्धि को तर देना,
और तरन-तार कर देना सब,
सबकी बुद्धि को तर देना................