जीवन इतना भी कठिन नहीं,
जितना लोगों ने डराया है !!
धन इतना भी तो जरूरी नहीं,
जितना लोगों ने बताया है !!
क्या धनी हैं सारे खुश जग में,
क्या धन से ही है खुशी सारी !!
धन से ही लफड़े हैं सारे,
इसने ही नाव डुबाया है !!
आदम से शुरू होके हम सब,
ना जाने क्या हो गये हैं अब !!
इन्सान थे शायद बीच कहीं,
फिर दौर गज़ब ये आया है !!
अब नफ़रत के ही शिकार सभी,
ईर्ष्या, छल,कपट है हावी यहाँ !!
है प्रेम सभी की ज़रूरत तो,
ये दौर किसने चलाया है !!
वेदव्यास मिश्र
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