लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का दर्द गहरा,
पति के बिना जीवन था सूनापन भरा।
वनवास में बसा था वह अकेला,
उर्मिला का मन था बेचैन, फेरा।
दिल में पीड़ा, आंखों में पानी,
हर पल उसकी यादों का आना था घमानी।
विरह में कांपे थे उसके पांव,
लक्ष्मण की वापसी की उम्मीदें थीं झाँव।
रातें वीरान, दिन भी उदास,
सपनों में दिखे उसे केवल वो प्रिय पास।
मन था व्याकुल, बुरा था हाल,
पतिव्रता उर्मिला का, ये था बड़ा सवाल।
सहने को तैयार थी वह हर दर्द,
लक्ष्मण के बिना संसार था सुनेहरा-सा बर्बाद।
विरह की पीड़ा में एक अजीब राग,
फिर भी मन में उम्मीद, आने का था अनुराग।