एक सपना लिया हदय में उतर पडा पड़ाव पर,
लोगों के घरों को देखकर और ताकता कब बनेगा मेरा घर,
दुख की बात तो यह थी कि सामान सारा आया था,
परिवार तो सदस्यों से बनता है यह बात समझ ना पाया था,
नए घर की अभिलाषा को हृदय में सझोया
ईट और पत्थर पत्थर से मेरा घर पिरोया,
काश मेरा एक सपने वाला घर हो,
जैसा भी हो बस घर हो अपना,
मेरा तो हृदय भी टूट पड़ा ,
ना जाने घर के अभिलाष कब पूरी होगी,
कब नहीं और लगेगी तब घर पर कार्रवाई शुरू होगी,
लेकिन कहते हैं ना किसी से खुशियां देखी ना गई और नजर जो लग चुकी
तांबे सोने का शहर मांगा ना था उसे क्या कहता है वह भी तो मेरा सगा न था
घर भवन निकेतन सारी विपदा और लाचारी है ,
जिस जगह पर रह रहे बस उसमें समझदारी है,
लेकिन मां करणी से एक वस्तु मांग रहा
तेरा बेटा तेरा लाल नये घर को ताक रहा,
मां दे दे जो देना है तुझको दे मां जो मांगा है तेरा बेटा ,
इस अभिलाष में न जाने कितनी रात्रि जागा है
----अशोक सुथार

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




