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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

पानी खाली करते रहते

नींद ना आने की वज़ह बदलते रहते।
कभी छत कभी दीवार दिखाते रहते।।

कहाँ छुपे बैठे हो सपनों में या सीने में।
बेवजह पालकों को भारी करते रहते।।

रंग बदल कर आँखों में करवट लेना।
न सोते न सोने देते बेचैन करते रहते।।

कट जाती रात हो जाता हल्का सवेरा।
इसी तरह तुम साँसे भारी करते रहते।।

दिन की तपन और ऊमस का बढ़ना।
मेरे 'उपदेश' पानी खाली करते रहते।।

- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! ✨
आपकी ये पंक्तियाँ नींद की बेचैनी और अनकहे जज़्बातों को बेहद खूबसूरती से बयाँ कर रही हैं।

“कहाँ छुपे बैठे हो सपनों में या सीने में।
बेवजह पालकों को भारी करते रहते।।”

हर शेर में रात की खामोशी, बेचैन दिल और रुकी हुई सांसों का अहसास साफ झलकता है —
लाजवाब अभिव्यक्ति! मन के हालात को शब्दों में इस तरह पिरोना आसान नहीं…आपकी लेखनी को सलाम! 🌙🖋️
आदरणीय एवं श्रद्धेय शाक्यवार सर जी को सादर प्रणाम

कमलकांत घिरी said

बेहतरीन पंक्तियां सर जी लाज़वाब 👏🙌👌✍️ प्रणाम स्वीकार करें 🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

Waah lajawab bemisaal

श्रेयसी said

बिल्कुल सही बात है वज़ह बदलते रहते हैं बहुत सुंदर लिखा आपने बहुत ख़ूब 🙏🙏

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