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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सैयाद खुश


क्या कर लेते बाँटके, तुम्हे धर्म के नाम।
तुम तो पहले से बंटे, जातियों के साथ।

दहशत के साये में, सिरफिरा पूछे धर्म।
आप गलियों में घूमकर पूछते वही धर्म।

दिल का जाति जहर,न छुपा जमाने से।
किसके गुनाह तलाशते चल पड़े आप।

अपनों का लहू बहा, कांपती न आत्मा।
कांपते हुए पूछ लेते,बचानेवाले से धर्म।

जैसे हिमालय टूटे, बिखरता आसमां।
बंटवारे का दंश देखा, टूटे घर समाज।

क्यों कुरेदते जख्म,खोलकर बार-बार।
मरहम न मिली तो,रहने दे पुराने घाव।

कलंकित मानवता पर, उठेगा सवाल।
मार डाले कुत्ते को,न बराबरी पे आप।

मासूमो के लहू से, सींची हुई है फसल।
भंडार भरे सैयाद खुश,बटेर लगी हाथ।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

वन्दना सूद said

बहुत सही लिखा आपने sir 👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

आपकी यह कविता एक गहरी सामाजिक चेतना और संवेदना से भरपूर है। हर शेर जैसे धारदार सवाल बनकर खड़ा हो जाता है — जो केवल जवाब नहीं चाहता, बल्कि जागृति और जवाबदेही की माँग करता है।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

आपकी लेखनी में विरोध का साहस और समभाव की लौ दोनों हैं। 🌿✍️🔥

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