क्या कर लेते बाँटके, तुम्हे धर्म के नाम।
तुम तो पहले से बंटे, जातियों के साथ।
दहशत के साये में, सिरफिरा पूछे धर्म।
आप गलियों में घूमकर पूछते वही धर्म।
दिल का जाति जहर,न छुपा जमाने से।
किसके गुनाह तलाशते चल पड़े आप।
अपनों का लहू बहा, कांपती न आत्मा।
कांपते हुए पूछ लेते,बचानेवाले से धर्म।
जैसे हिमालय टूटे, बिखरता आसमां।
बंटवारे का दंश देखा, टूटे घर समाज।
क्यों कुरेदते जख्म,खोलकर बार-बार।
मरहम न मिली तो,रहने दे पुराने घाव।
कलंकित मानवता पर, उठेगा सवाल।
मार डाले कुत्ते को,न बराबरी पे आप।
मासूमो के लहू से, सींची हुई है फसल।
भंडार भरे सैयाद खुश,बटेर लगी हाथ।