तुम जीत गए, हम हार गए,
बोलो अब क्या उपकार गए?
हम रूह लिए आये थे यहाँ,
तुम तो बस व्यापार गए।
हम मौन खड़े, तुम तटस्थ बने,
जो थे आधार, वही भार गए।
जो दिल में रखा, वो धूल हुआ,
जिनको थामा, वो भी पार गए।
तुम दीप नहीं, एक धुंध थे बस,
हम समझे तुम भी उज्जार गए।
हम प्यास लिए फिरते रहे यूँ,
और तुम जल बनकर खार गए।
हम दर्द लिखे, तुम व्यंग्य हुए,
हम साँसों में, तुम अख़बार गए।
जब तुमको देखा टूटते हुए,
हम अपनी ही दीवार गए।
अब जब रोओगे एकाकी में,
हम भी न होंगे, संसार गए।
तब जानोगे क्या हारा था,
जब हम थे और तुम ख़ुद पर वार गए।
तुम थकते नहीं, बस भागे हो,
हम ठहरे थे, तुम रफ्तार गए।
हमने जो कहा, वो सच था बस,
तुम बोले — और हम संहार गए।
हम दीप जलाते रहे मन में,
तुम आँधियों के प्रचार गए।
जब झूठ सँवारा तुमने खुद को,
हम दर्पण बनकर धार गए।
तुम हँसते रहे उस दिन भी जब,
हम नींद में भी लाचार गए।
अब देर न करना समझने में,
हम लौटे नहीं — उस पार गए।