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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जी रहे हैं हम – कमलकांत घिरी

वक्त का मरहम लिए जख्मों को सी रहे हैं हम,
लबों की मिठास देकर कड़वाहट पी रहे हैं हम,
चाहते तो नहीं थे जिंदा रहना मगर...
देखकर आपको जी रहे हैं हम..!

-----(कमलकांत घिरी, मनकी, मुंगेली, छत्तीसगढ़)।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Lekhram Yadav said

वाह क्या लाईनें लिखी हैं मजा आ गया, मगर आप चिन्तित न सभी एक दूसरे को देखकर ही जीते हैं और आपका जिन्दा रहना हमारे लिए जरूरी है दोस्त।

कमलकांत घिरी replied

आपका बहुत बहुत आभार सर जी 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah kya alfaaz hain Kant sir pranaam

कमलकांत घिरी replied

तारीफ़ के लिए शुक्रिया सर जी🙏, किंतु प्रणाम कहकर आप मुझे सरमिंदा न करें भाई जी क्योंकि मैं आपसे उम्र और तजुर्बे दोनों में काफ़ी छोटा हूं (21year),आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें और अपना आशीश मुझपर बनाए रखें।🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

क्या बात है... तालियां

कमलकांत घिरी replied

शुक्रिया रीना दीदी 🙏🙏

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