वक्त का मरहम लिए जख्मों को सी रहे हैं हम,
लबों की मिठास देकर कड़वाहट पी रहे हैं हम,
चाहते तो नहीं थे जिंदा रहना मगर...
देखकर आपको जी रहे हैं हम..!
-----(कमलकांत घिरी, मनकी, मुंगेली, छत्तीसगढ़)।
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