आँख से आँख मिल गई कबसे,
मुझको मालूम ही नहीं कुछ भी !!
दिल ये कब से हुआ तुम्हारा सनम,
इसने मुझसे कहा कभी कुछ नहीं !!
ये पता मुझको है चला तब से,
नींद और चैन उड़ गई मेरी !!
और क्या करता कैसे समझाता,
दिल मेरा कुछ भी सुनता ही नहीं !!
रात गुजरी है याद में तेरी,
ध्यान कहीं और भी गया ही नहीं !!
दिन का भी हाल क्या बताऊँ तुम्हें,
कितना समझाओ दिल समझता नहीं !!
----वेदव्यास मिश्र
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