यह कहानी है उस भौतिक वैज्ञानिक की
जिसने अपनी ही प्रतिभा से तबाही लिखी
तबाही तो तीन जगह हुई थी
पर दुनिया को बस दो याद रहीं—
हिरोशिमा और नागासाकी की।
तीसरी तबाही, जो दिल पर पड़ी
उसे दुनिया ने यूँ ही भुला दिया
वह प्रतिभा
जो विश्वविद्यालय में दीप्तिमान थी
शोध-पत्रों से जिसने दुनिया को जाग्रत किया
जिसे चाहा हर प्रतिष्ठित संस्थान ने
जो बना प्रोफेसर दो संस्थान में।
मुझे अचरज है, गहरा दुख भी है
कैसे भूल गई दुनिया वह चेहरा
जो आत्मा तक को झकझोर गया
हर सुख-चैन को उससे छीन लिया।
महज़ 42 की उम्र में उसने
अपनी प्रतिभा को त्याग दिया
क्योंकि लाखों की मौत ने उसे
बेचैनी के अथाह सागर में डुबो दिया।
यह पीड़ा, यह आत्मग्लानि
उसके दिल में बन गई प्रलय
पर दुनिया तो बस भूल गई
उस महानता का सारा प्रभाव।
फिर भी सोचता हूँ, वह त्याग
वह दर्द, जो शब्दों से परे है
ईश्वर की नज़रों में वह अजर-अमर है
उसकी महानता का दिया आज भी जलता है।
मैं ओपेनहाइमर को अब भी याद करता हूँ
उसके त्याग और कृतित्व को नमन करता हूँ
दुनिया को भी उसकी राह दिखाता रहूँगा
उसके दर्द और महानता को बताता रहूँगा।
प्रतीक झा 'ओप्पी'
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




