क्या याद करेगा हमको ज़माना
हमें नहीं है कुछ भी दिखान।
हमें चुप शांत जड़ बन रहना है।
बड़ा शोर है विध्वंश रोष की
अरे भाई किसी को तो चुप रहना है।
अहंकार है बड़ा झंकार है ।
चीखें दूर तलक से आतीं हैं ।
इन ऊंची महलों को सुनना यें
गान व्याधि संताप की गाती हैं।
क्रोध लोभ मद मोह में उलझा
नहीं एक भी बंद बचा
सब हमाम में नंगे हैं।
सिर्फ ऊपरी टिप टाप है
नीचे से पेवन पिंगें हैं।
जीवन के भोग विलास में
सब लिए दर्द बनें चंगे हैं।
टाई कोट पतलून पहने
लगते सभी भीखमंगें हैं।
परोपकार का उपकार
हर किसी को चाहिए ।
क्या आदमी को खुद के ऊपर
उपकार नहीं करना चाहिए।
मुफ़्त की राशन
मुफ्त का भाषण
हर कोई चाहता है।
पर पेट भरा हो तो आदमी को
आदमी भी नहीं पहचानता है।
भूखा तो भूखे मर रहा ।
खाउ मल खा खा मर रहा ।
ना कोई विचार प्रतिकार होता है।
पाप वाला राज़ कर रहा
भैया अज़काल पुण्य वाला रोता है।
इसमें अचरज की बात नहीं
कलयुग में ऐसा अक्सर होता है...
कलयुग में ऐसा अक्सर होता है...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




