मुझे ऐसा क्यों लगा खामोश हैं तूँ ।
किसी के लिए आज भी मदहोश है तूँ ।।
मोहब्बत बखूबी रहीं मगर मजबूरी ।
शायद उसी वज़ह से नाराज है तूँ ।।
हकीकत में परिवर्तन हो रहा मुझमे ।
मुस्कुरा रहीं हूँ भरोसे पर नाज़ है तूँ ।।
समझने लगी हूँ जिन्दगी एक ख्वाब है ।
मूलधन मैं रही 'उपदेश' मगर व्याज है तूँ ।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद